उमरिया विशेष
11-Mar-2025


- Rajesh sharma



प्लास्टिक और कचरे से पटी उमरार

नागरिकों ने बना दिया गंदा नाला, पार की संवेदनहीनता की हदें

बांधवभूमि न्यूज

मध्यप्रदेश

उमरिया
शहर को अपना नाम और जीवन देने वाली उमरार अब दिनो-दिन खात्मे की ओर अग्रसर है। धार तक हुए बेतहाशा अतिक्रमण और कमीशनखोरी के लिये बांधे गये अनुपयोगी जलाशयों के कारण पहले ही अपना वैभव खो चुकी इसी नदी के प्रति नागरिकों की संवेदनहीनता ने भी कई समस्यायें पैदा की हैं। आज भी घरों से निकला मल-मूत्रयुक्त जहरीला पानी सीधे नदी मे गिराया जा रहा है। और तो और आमतौर पर लोग सफाई के कचरे से भरी पॉलिथीन परवान कर नदी के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए निकल जाते हैं। इतना ही नहीं टूटी हुई बाल्टियां और पुराने मटके तक इसी मे डाले जा रहे हैं।

नहीं बचा आचमन लायक भी जल
गंदगी का आलम यह है कि नगर मे प्रवेश से लेकर प्रस्थान तक कहीं भी नदी का पानी पीने तो क्या आचमन लायक भी नहीं है। हर जगह पानी पर जमी काई की परतें, धार के दोनो पार नालों से समाता कीचड़ और बदबूदार पानी, बिखरी हुई प्लास्टिक व दूषित सामग्री उमरार के दर्दनाक अंत और आने वाली तबाही का संकेत दे रहे हैं।

मां के प्रति यह कैसी श्रद्धा
भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जहां नदियों को माता कहा जाता है। सनातन धर्म मे तो अपनी अस्थियों के रूप मे इन्हीं नदियों मे चिर आश्रय प्राप्त करने की परंपरा है। देश की कई सभ्यतायें नदियों के किनारे पनपीं और शहरों के नामकरण भी इन्हीं के अनुसार हुए परंतु जिसने सब कुछ दिया आदमी उसी को खत्म करने पर तुल गया। जबकि जो विदेशी नदी को मां की बजाय केवल रिवर मानते हैं, वहां उनकी हालत हमसे कई गुना बेहतर है।

सरकार ही नहीं नागरिक भी समझें जिम्मेदारी
कहते हैं कि जब संतान ही कपूत हो तो कोई क्या कर सकता है, उमरार के मामले मे तो ऐसा ही है। लोग चाहते हैं कि सब कुछ सरकार करे, वह कर भी रही है। कई बार उमरार के जीर्णोद्धार का प्रयास हुआ परंतु जितना कचरा निकला उससे ज्यादा फिर से तोप दिया गया। कहा जाता है कि विदेशों की नदियां इसलिये साफ हैं कि वहां के लोग संवेदनशील हैं। ऐसी ही जागरूकता जब तक यहां के निवासियों मे नहीं आयेगी, चीजें नहीं बदलेंगी। पर्यावरण विशेषज्ञों का मत है कि यदि प्रत्येक नागरिक यह संकल्प ले ले कि वह आज से नदी मे कचरा या पॉलिथीन नहीं फेंकेगा, तो आधी समस्या अपने आप हल हो जायेगी।

कैचमेंट एरिया और स्त्रोत पर तन गई बिल्डिगें
जिला मुख्यालय बनने के बाद शहर का तेजी से विकास हो रहा है। उमरिया तथा आसपास के दर्जनो गावों की अधिकांश आबादी का जीवन-यापन उमरार पर ही निर्भर है। जानकारों का मानना है कि जिस तरीके से भूमिगत जल का उपयोग बढ़ा है, आने वाले दिनो मे पानी की किल्लत भीषण रूप ले सकती है। ऐसे मे जब नदी और तालाब भी नहीं रहेंगे तो हालत क्या होगी। बीते कुछ सालों मे उमरार की जमीन पर भारी अतिक्रमण हुआ है। स्थिति यह है कि नदी मे आने वाले पानी के स्त्रोत और कैचमेंट एरिया पर भी बिल्डिंगें तन गई हैं। इससे नदी के पानी की आवक खत्म हो गई है। किनारों पर अतिक्रमण के कारण बरसात मे बाढ़ और जलप्लावन का खतरा कई गुना बढ़ गया है।